Tatya tope short biography in hindi
Etemaad khorshid biography for kidsआज इस आर्टिकल में हम आपको तात्या टोपे की जीवनी – Taya Tope Biography Hindi के बारे में बताते हैं। tatya tope ki Jivani
तात्या टोपे की जीवनी – Taya Tope Autobiography Hindi
Taya Tope ने अपने साहस और वीरता के बल पर अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए थे।
तात्या टोपे ने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया।
उन्होंने अपने नाना साहेब की सेना के साथ मिलकर कानपुर को जीता और 20 दिन अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा।
तात्या टोपे मानसिंह से मिले धोखे के कारण जनरल नेपियेर से हार मिली।
जन्म
इनका मूल नाम राम राम चंद्र था तथा ये नाना साहेब की फौज के सेनापति थे।
तात्या टोपे का जन्म कट्टर मराठी ब्राह्मण के परिवार में हुआ था।
उनका वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग था।
उनका जन्म 1814 में महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता का नाम पांडुरंग राव और माता का नाम रुकमा बाई था।
यह हिंदू धर्म के ब्राह्मण जाति से संबंध रखते थे।
शिक्षा – तात्या टोपे की जीवनी
Taya Tope ने शस्त्रों के शिक्षा नानासाहेब और लक्ष्मी बाई के साथ ली.
वे बचपन से ही बहूत साहसी थे।
एक बार धनुर्विद्या की एक परीक्षा में तीनों को और बालाजी राव, बाबा भट्ट को 5 तीर दिए गए जिनमें से बाबा भट्ट और बाला साहेब ने दो बार, नाना साहिब ने 3 बार, लक्ष्मीबाई ने 5 बार और तात्या टोपे ने पांचों तीरो से निशाना साधा।
तात्या टोपे का 18 57 की क्रांति में योगदान
तात्या टोपे के नेतृत्व में नाना साहेब की सेना ने सबसे पहले कानपुर को जीता था।
यहां पर उन्होंने लगभग 20 दिनों तक अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखा।
कानपुर के दूसरे युद्ध में अंग्रेजो से हारने के बाद तात्या टोपे और नाना साहिब कानपुर छोड़ कर चले गए थे।
नाना साहिब के गायब होने के बाद तात्या टोपे ने अंग्रेजों के साथ अपना संघर्ष जारी रखा।
उन्होंने कालपी के युद्ध में झांसी की रानी की मदद की ।
नवंबर 1857 को उन्होंने ग्वालियर में विद्रोहियों की सेना को इक्कठा किया और कानपुर को वापस जीतने के सफल प्रयास करने लगे। ग्वालियर में उनको पेशवा घोषित किया, लेकिन जल्द ही अंग्रेजों ने उनसे ग्वालियर छीन लिया।
ग्वालियर में एक सरदार मानसिंह ने उन्हे धोखा दिया था।
उसने जागीर के लालच में अंग्रेजों के अंग्रेजों से हाथ मिला लिया था।
1857 के विद्रोह में इन्होंने बिठुर, झांसी, कालपी, सभी स्थानों पर अपने अद्वितीय साहस और वीरता से अंग्रेजों को भयभीत कर दिया था।
तात्या टोपे के नाम पर धरोहर
कानपुर में तात्या टोपे के नाम का स्मारक बना हुआ है।
इस शहर में एक जगह का नाम भी तात्या टोपे के नाम पर है।
जिसे तात्या टोपे नगर के नाम से जाना जाता है। शिवपुरी में भी उनके नाम का स्मारक बना हुआ है।
कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल म्यूजियम में तात्या टोपे का अचकन प्रदर्शनी में लगा हुआ है।
गोल्डन जरी और लाल बॉर्डर के इस अचकन को उन्होंने 1857 के युद्ध में पहना था।
2016 में राज्य के कल्चर एंड टूरिज्म एंड सिविल एविएशन मंत्री ने ₹200 का स्मरणीय सिक्का और ₹10 का सरक्यूलेशन सिक्का जारी किया।
मृत्यु – तात्या टोपे की जीवनी
तात्या टोपे को मान सिंह से मिले तो धोखे के कारण जनरल नेपियेर से हार मिली और ब्रिटिश आर्मी ने उन्हें 7 अप्रैल 1859 को गिरफ्तार कर लिया, गिरफ्तार करने के बाद तात्या टोपे ने क्रांति में अपनी अहम भूमिका होने का कोई भी दुख नहीं जताया और कहा कि उन्होंने जो कुछ भी किया, वह मातृभूमि के लिए किया है।
इस कारण उन्हें 18 अप्रैल 1859 को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
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